नैतिक कहानी: बड़बोला दूधवाला चुप रह गया

हमारे एक पड़ोस के ताऊ जी सरकारी सेवा से अवकाश प्राप्त है । वह हमेशा कहते हैं कि जब तक जेब में छह हजार रूपए नहीं रहते, मुझे चैन नहीं रहता । लिहाजा हमेशा उनकी जेब में इतने रूपए मौजूद रहते । कई लोगो को समय पड़ने पर वह मदद भी कर देते थे । इसलिए हमें भी उनकी यह आदत बुरी नहीं लगती थी । एक दिन सुवह जब हम दुध लेने दूधवाले के पास पहुंचे, तो वह भेस दुहने की तयारी कर रहा था । हमारे पहुँचते ही वह बोला, ‘बाबूजी, जाकर तख़्त पर बैठ जाइये । यहाँ खड़े रहेंगे तो भैंस बिदक जाएगी’ । इतना सुनते ही ताऊ जी बोले, ‘मैँ यहीं पर खड़ा रहूँगा । ताकि तुम पानी न मिला सको’ ।

यह सुनकर दूध वाला गुस्से मैँ आ गया और बोला, ‘इतना ही शुद्ध दूध पीने का शोक है, तो एक भैंस ही खरीद लीजिये ।’ यह सुनते ही बात बढ़ गई और ताऊ जी ने कहा, ‘बोलो, इस भैंस का कितना पैसा लोगे ?’ दूधवाला भी ताव में आकर बोला, ‘निकालिये तीन हजार रूपए, पर अभी तुरंत देने होंगे ।’ उसे लगा था कि इतनी सुबह कहाँ कोई इतने पैसे लेकर चलता होगा । पर उसकी सोच उलटी पर गई । ताऊ जी ने तुरंत अपनी जेब से तीन हजार रूपए निकाले और उसके हाथ में रखकर बोले, ‘लो तीन हजार, अब यह भैंस मेरी ।’ अब तो दूध वाले के पसीने छूटने लगे । अचानक ऐसे प्रतिउत्तर का उसे अंदाज़ा नहीं था । और फिर दस – ग्यारह हजार कि भैंस कि कीमत तीन हज़ार ने उसे और परेशान कर दिया । अब तो वह बाज़ी हार चूका था, लिहाजा उसके पास सिवाय क्षमा याचना के कोई दूसरा उपाय नहीं था । पर ताऊ जी नहीं माने और उसके बड़बोलेपन की उसे सजा देते हुए बोले, ‘आज का दूध मैं फ्री लूंगा । यही तुम्हारी सजा है । ‘दूध वाले के पास न करने की हिम्मत नहीं थी ।

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